सुभाष चन्द्र बोस उर्फ नेताजी को अनुकरण, अनुसरण, आत्मार्पित, अंगीकृत, और अधिनियमित कर सबका साथ, सबका विष्वास अतीत से बेहतर प्राप्त कर सकते है दिव्य भव्य भारत के नव्य नायक नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को श्रद्धांजलि डा. कुमार लोकेश भारद्वाज 945015954
सुभाष चन्द्र बोस उर्फ नेताजी परम श्रद्धेय प्रभावती दत्त बोस और जानकीनाथ बोस की कुल 14 सन्ताने 6 बेटियाँ और 8 बेटो मे नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे। उन्का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। उन्के पिता कटक शहर के मशहूर बैरिस्टर थे, आरम्भ मे सरकारी वकील, बाद में निजी प्रैक्टिस शुरू करते हुये कटक महापालिका में लम्बे समय तक सेवा देने के बाद बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे थे और अंग्रेज सरकार द्वारा रायबहादुर खिताब से सम्मानित थे ।
नेताजी ने आरम्भिक शिक्षा दीक्षा के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से पूर्ण कर, रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल से 1915 में इण्टरमीडियेट, प्रेसीडेंसी कॉलेज से 1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान प्रप्त कर उत्तीर्ण की थी। पिता की इच्छा के अनुरुप वह 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड गये और 1920 में आईसीएस की परीक्षा मे चयन सूची में चैथा स्थान प्राप्त किया था । महर्षि दयानंद सरस्वती और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों से ओतप्रोत नेता जी ने अंग्रेजों की गुलामी के सापेक्ष आईसीएस से त्यागपत्र दे जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में डिग्री लेकर स्वदेश वापस लौट आये थे।
रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर भारत वापस आने पर वे महात्मा गांधी से मुम्बई में मणिभवन 20 जुलाई 1921 पहली मिले थे । उन दिनों गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन चला रखा था जिसका बंगाल में वरिश्ठ राजनीतिक कार्यकर्ता व स्वतन्त्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास बाबू नेतृत्व कर रहे थे। गाँधी जी ने उन्हें कोलकाता जाकर के साथ काम करने की सलाह दी। नेताजी ने वर्ष 1921 में चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र फॉरवर्ड के संपादन का कार्यभार संभाला ।
गाँधी जी द्वारा 5 फरवरी 1922 को चैरी चैरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया वैचारिक भिन्नता के चलते 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना कर कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी से लड़कर महापौर बने। उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी बनाया। सुभाष चन्द्र ने महापालिका का पूरा ढाँचा बदल कर सभी अंग्रेजी नाम परिवर्तन कर भारतीय करते हुये स्वतन्त्रता संग्राम बलिदानियो महापालिका में नौकरी प्राविधानित कर दी थी।
सुभाष अपनी कार्यषैली से राश्ट्र के महत्वपूर्ण युवा नेता बन चुके थे। तथा जवाहरलाल नेहरू के साथ कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू की। वर्ष 1923 में बोस को अखिल भारतीय युवा काग्रेस का अध्यक्ष चयनित और बंगाल प्रदेष काग्रेस का सचिव नामित किये बये ।
सुभाष के नेतृत्व मे 1927 में साइमन कमीशन के भारत आगमन पर कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये। कांग्रेस ने भारत का संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता मे गठित किया जिसका एक सदस्य सुभाष को चुना था । सुभाष ने खाकी वर्दी मे मोतीलाल नेहरू को कोलकाता मे 1928 के कांग्रेस वार्षिक अधिवेशन मे मोतीलाल नेहरू को प्रथम बार सैन्य तरीके से सलामी दी। और आयोग की रिपोर्ट नेहरू को पेश की थी । गाँधी जी भारत को डोमिनियन राज्य के रुप मे आजादी के पक्षधर थे वही सुभाष और जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराज चाहते थे। 1930 में प्रथम बार कांग्रेस के लाहौर वार्षिक अधिवेशन मे जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 26 जनवरी का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। ईसी वर्श बोस ने 1930 में कोलकाता का महापौर का चुनाव कारावास मे रह कर जीता इसलिए सरकार उन्हें रिहा कर दिया था ।
सुभाष चन्द्र ने कोलकाता में 26 जनवरी 1931 को राष्ट्र ध्वज फहराकर विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी बरसायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। भगत सिंह सहित कुछ कैदियो को न छुडा पाने के कारण गांधी जी मनभेद हो गये थे ।
सुभाष चन्द्र को 1932 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। बाद मे 1932 में सुभाष अल्मोड़ा जेल गये जहा उनकी तबियत खराब हो गयी। चिकित्सकों की सलाह पर इलाज के लिये यूरोप ले जाया गया।सन् 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे वहाॅ इटली मे मुसोलिनी, आयरलैंड मे डी वलेरा से भारत के स्वतन्त्रता सग्राम मे सहयोग का वचन लिया ।
सुभाष चन्द्र ने 1937 में जापान द्वारा चीन पर आक्रमण पर चीनी की सहायता के लिये डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस के नेतृत्व में चिकित्सकीय दल भेजा था। कांग्रेस के 51 वे वार्षिक अधिवेशन 1938 मे हरिपुरा में गान्धी जी ने सुभाष को अध्यक्ष पद के लिए नामित किया था। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सुभाष ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता मे पहला योजना आयोग, व मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरय्या की अध्यक्षता में विज्ञान परिषद की स्थापना की स्थापना की थी।
इसी कालखण्ड मे द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो रहा था और सुभाष चन्द्र ने विशम परिस्थिातियो मे स्वतन्त्रता आन्दाोलन तेज करना चाहते थे। परन्तु गांधी जी असहमत थे। 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव मे महात्मा गान्धी के समर्थित प्रत्याषी ़श्री पट्टाभि सीतारमैय्या को हरा कर सुभाश 203 मतों से चुनाव जीत गये। गाधी जी से वैचारिक विभेद के चलते 29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पडा था ।
सुभाष चन्द्र ने 3 मई 1939 को कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से नयी स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना कर स्वतन्त्रता संग्राम को अधिक तेज करना आरम्भ कर दिया था। 3 सितम्बर 1939 को ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध छिड़ने की सूचना मिलने पर काँग्रेस कार्य समिति ने 8 सितम्बर 1939 को विशेष बैठक आमन्त्रित की थी, सुभाष ने देष को आजाद कराने का अभियान तेज करने का संकल्प दोहराते हुये कहा था कि अगर काँग्रेस साथ नहीं देती है तो फॉरवर्ड ब्लॉक अकेले ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध शुरू कर देगा।
अगले ही वर्ष जुलाई मे सुभाष की यूथ ब्रिगेड के स्वयंसेवक में कलकत्ता स्थित ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा स्थापित हालवेट स्तम्भ की एक-एक ईंट उखाड़ कर प्रतीकात्मक शुरुआत कर दी थी। परिणाम स्वरूप अंग्रेज सरकार ने फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओं को कैद कर लिया। सुभाष ने जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। हालत खराब होते ही सरकार ने उन्हें रिहा कर पुलिस के कड़े पहरे मे उनके ही घर पर नजरबन्द कर दिया।
नजरबन्द सुभाश चन्द्र ने 16 जनवरी 1941 को पुलिस को चकमा देते हुए एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन के वेश में झारखंड राज्य के धनबाद जिले से फ्रण्टियर मेल पकड़कर पेशावर पहुँचे। वहाॅ मियाँ अकबर शाह व किर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार के साथ पैदल चलते हुए अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पहुचे थे। काबुल में सुभाष दो महीनों तक उत्तमचन्द मल्होत्रा के घर में रहे कर पहले रूसी दूतावास, जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने की कोशिश की। इटालियन दूतावास की मदद से मास्को होते हुए जर्मनी मे बर्लिन पहुँचे।
बर्लिन में भारतीय स्वतन्त्रता संगठन और आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की और नेताजी के नाम से पहचान बनाई , और 29 मई 1942 को जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। लेकिन सहायता का स्पष्ट आष्वासन नहीं मिला ।
सुभाष चन्द्र ने 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बन्दरगाह से पनडुब्बी में बैठकर हिन्द महासागर में मैडागास्कर और जापानी पनडुब्बी नेें इंडोनेशिया के पादांग बन्दरगाह तक पहुँचा दिया गया था। पूर्वी एशिया पहुँचकर सुभाष ने सर्वप्रथम वयोवृद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस से सिंगापुर के एडवर्ड पार्क में स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व प्राप्त किया था। जापान के प्रधानमन्त्री जनरल हिदेकी तोजो ने नेताजी से प्रभावित होकर उन्हें सहयोग करने का आश्वासन दिया तथा जापान की संसद का सम्बोधन भी कराया था।
सुभाष चन्द्र ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अन्तरिम सरकार) की स्थापना की और सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और युद्धमन्त्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता प्रदान की थी। नेताजी आजाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बने थे।
जापानी सेना द्वारा अंग्रेज सेना से पकड़े हुए भारतीय युद्धबन्दियों को भर्ती कर आजाद हिन्द फौज और महिलाओ लिये झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी। पूर्वी एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण देकर वहाँ के स्थायी भारतीय लोगों से आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने और उसे आर्थिक मदद देने का आह्वान किया। उन्होंने अपने आह्वान में यह नारा भी दिया था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।
द्वितीय विश्वयुद्ध मे आजाद हिन्द फौज ने जापान सेना की सयुक्त सेना ने अंग्रेज सेना पर आक्रमण कर अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिये। यह द्वीप आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिन्द के अनुशासन में रहे। नेताजी ने इन द्वीपों को शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप का नया नाम दिया। सयुक्त सेना ने इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया, अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और सयुक्त सेना को पीछे हटना पड़ा। भारतीय नागरिको को प्रेरित करने के लिये दिल्ली चलो का नारा भी दिया।
सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर राश्ट्र के नाम सम्बोधन पर गांधीजी को सम्बोधित करते हुए जापान से सहायता लेने का उद्येष्य और आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिन्द तथा आजाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य सार्वजनिक किये । सम्बोधन में सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी को राष्ट्रपिता व गांधीजी ने भी उन्हे नेताजी का नामाकरण किया था ।
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने ने रूस से सहायता माँगने के उद्येष्य से 18 अगस्त 1945 हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इसके बाद वे कभी किसी को दिखायी नहीं दिये ।
टोकियो रेडियो ने 23 अगस्त 1945 को ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे और 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पाइलेट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयीं। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार मे सुरक्षित अभिलेखो के अनुासार उनकी नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी ।
उनकी मृत्यु स्पश्ट न होने के कारण स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने 1956 और 1977 में दो बार घटना की जाँच करने के लिये आयोग नियुक्त किया गया। अन्तिम परिणाम नेताजी का विमान दुर्घटना में शहीद होना है। मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग वर्श 1999 में बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने कहा कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। 18 अगस्त 1945 के बाद नेताजी कहाँ लापता हो गये यह विष्व के इतिहास का सबसे बड़ा अनुत्तरित प्रष्न हैं।
यह सच है कि आजाद हिन्द फौज द्वारा देष अंग्रेजों से प्रत्यक्ष रूप से आजाद नही हो सका परन्तु सन् १९४६ के नौसेना विद्रोह इसका दूरगामी प्रभाव है। नौसेना विद्रोह से ही ब्रिटेन भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन न कर पाने की अवधारणा पर विवेचना करने पर मजबूर हुआ और भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नही नहीं है जिसमे तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए प्रबल संघर्ष किया हो।
नेता जी जीवन हर भारतीय के लिए आदर्श है। देश की आजादी के लिए प्रशासनिक सेवा का परित्याग कर स्वदेश लौट कर आजाद भारत की मांग करते हुए आजाद हिंद सरकार, आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद बैंक स्थापित किया, जिसे 10 देशों का समर्थन मिला।
युग पुरुश नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा महामानव ना दुबारा कभी पैदा हुआ और ना होगा। धन्य है वह परिवार और वह मिटटी जिसपर ऐसे महान सपूत ने जन्म दिया। हम षब्दो से श्रद्धंाजलि नही दे सकते बल्कि उनको अनुकरण, अनुसरण, आत्मार्पित, अंगीकृत, और अधिनियमित कर सबका साथ, सबका विष्वास अतीत से बेहतर प्राप्त कर सकते है
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