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शहीद रत्न चन्द्रशेखर आजाद जी को दिल से श्रद्धांजलि।

 






 चन्द्रशेखर तिवारी जी का जन्म 23 जुलाई 1906 में हुआ था।  इनके पिता जी ब्रिटिश सरकार में दरोगा थे।  इनकी माता जी जगरानी देवी बदरका उन्नाव की थी।  आरंभिक जीवन मध्यप्रदेश के आलीराजपुर, रियासत में बीता।  वह आदि वासियों के साथ निशाने बाजी आदि में निपुण थे।  आरंभ में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आन्दोलन में जुड़ने के बाद, अमृतसर में 1919 में जलियांवाला बाग घटना के विरोध में युवाओं के क्रांतिकारी आन्दोलन के आरंभ करते हुए  हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन में श्री अशफाक उल्लाह कहा, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लहरी, के साथ सक्रिय हुए।   

आदरणीय जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा हैं कि अंग्रेजो के देश विरोधी 

    ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र १४ या १५ साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। उसे नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। बेत एक एक कर उस पर पड़ते और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते पर वह हर बेत के साथ चिल्लाता'भारत माता की जय!'। वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक की वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के अग्रणी क्रान्तिकारी बने।   आजाद के पिताजी ने ब्रिटिश सरकार में दरोगा थे, काकोरी कांड के बाद नौकरी छोड़ कानपुर में पैतृक स्थान कानपुर झाँसी मार्ग पर स्थित भौती, कानपुर नगर में प्रवास किया।  अपना घोड़ा 1942 के प्रथम क्रांतिकारी मंगल पांडेय जी के पारिवारिक जनों की एक्का घोड़ा अस्तबल इफ्तिखाराबाद, लाटूश रोड पर रखा था।  जिसे चन्द्रशेखर जी प्रयोग करते थे। चन्द्रशेखर जी की बमतुल बुखारा अमेरीका निर्मित 32 बोर सेमी ऑटोमेंटीक 8 फायर पिस्टल  प्रथम विश्वयुद्ध में  वापस आए ग्राम व पोस्ट पेराजोर, थाना गजनेर कानपुर के कप्तान साहब ने उपलब्ध कराया था। जिसे किसी सैनिक अधिकारी से छीना था।  आज भी वह प्रयागराज संग्रहालय में रखी है।  

लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए गलती से सनड्रस की  हत्या कर दी गई थी।  श्री आजाद ने   रूस से होते हुये ब्रिटिश असेंबली में बम डालने का प्लान तैयार किया था परन्तु वह कार्य परम शहीद सरदार भगत सिंह ने निष्पादित किया।  

श्री चन्द्रशेखर तिवारी जी इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजो को मौत के घाट उतारते हुए अपनी गोली द्वारा शहीद 27 फरवरी 1931 हो गए थे।  रावतपुर गोल चौराहे पर लगी उनकी प्रतिमा का मुह भौती की तरफ है।  भौती, कानपुर में आज भी उनके वशज निवासरत हैं।  

मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा, और आजाद ही मरुगा का अमृत वाक्य की उद्घोष करने वाले शहीद रत्न चन्द्रशेखर आजाद जी को  दिल से श्रद्धांजलि।     

जय भीम, नमो बुद्धाय, जय संविधान ।

 डॉ लोकेश शुक्ला 945012595

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